अपनों की फेहरिस्त से अलग
कई नाम थे ऐसे,
जब वक्त पडा तो
सिर्फ काम जो आये
प्यासे के लिये बेमानी है
समन्दर की रवानी,
दो बूंद बारिश की
चातक की प्यास बुझाये
टूटे हुये टुकडों को
जरा जोड के देखो
इक वफ़ा भरा दिल है
दर्द छुपाये
यादों की गली से जरा
इक बार दोबारा तो गुजरो
जानोगे, कौन बैठा रहा बरसों
इन्तजार में पलकें बिछाये
वैसे तो नामुमकिन है
तेरा लौट के आना
जाने क्यों बैठा हूं मै
उम्मीद लगाये
2 comments:
प्यासे के लिये बेमानी है
समन्दर की रवानी,
बहुत सुन्दर.
बहुत अच्छी लगी.
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