जब तुम आये नहीं मिलने
क्यों न तुमसे शिकायत होगी
दूर है तेरा ठिकाना तो क्या है
तेरा खत हम पर इनायत होगी
अपने दिल की बातें न सही
हाले-बयां शहर का लिखना
दिल बहल जाये फिर से मेरा
तुम्हें थोडी सी तो जहमत होगी
आंख न कर नम मेरे लिये
दिल में न रहे गम मेरे लिये
करीबी रिश्ता है दोनों का मुझसे
मेरे प्यार की यही तो लज्जत होगी
घर के आईनों में उभरती नहीं
खुद अपनी सूरत साफ़गो हो कर
ख्वाव जब पत्थरों से टकरायेंगे
जिन्दगी की वही तो हकीकत होगी
दर्द से कई बार रूबरू हो कर
अब जख्मों से डर नहीं लगता
जिन्दगी कितनी भी बेवफ़ा है लेकिन
मौत कतई न ऐसी बेमुरव्वत होगी
इनायत = मेहरबानी, करम
हाले-बय़ां = दिल का हाल
जहमत = तकलीफ़
लज्जत = स्वाद
साफ़गो = साफ़ साफ़,
हकीकत = सच्चाई
बेमुरव्वत= दगाबाज, धोखा देने वाला/वाली
8 comments:
मोहिन्दर जी,
छंद का बडा अच्छा ग्यान है आपको।
इसी भाव में एक गजल है॰॰॰
'चाहत देश से आने वाले , ये तो बता कि सनम कैसे हैं ?'॰॰॰॰ सुनी होगी।
सरल और प्यारा काव्य।
शुक्रिया
देवेश वशिष्ठ ' खबरी '
मेरा हिन्दी भी ब्लोग देखें।
http://deveshkhabri.blogspot.com
घर के आईनों में उभरती नहीं
खुद अपनी सूरत साफ़गो हो कर
ख्वाव जब पत्थरों से टकरायेंगे
जिन्दगी की वही तो हकीकत होगी
दर्द से कई बार रूबरू हो कर
अब जख्मों से डर नहीं लगता
जिन्दगी कितनी भी बेवफ़ा है लेकिन
मौत कतई न ऐसी बेमुरव्वत होगी
wah wah ..kya baat hai bahut khoob likha hai
दर्द से कई बार रूबरू हो कर
अब जख्मों से डर नहीं लगता
जिन्दगी कितनी भी बेवफ़ा है लेकिन
मौत कतई न ऐसी बेमुरव्वत होगी
--बहुत खूब, मोहिन्दर भाई. बधाई.
घर के आईनों में उभरती नहीं
खुद अपनी सूरत साफ़गो हो कर
ख्वाव जब पत्थरों से टकरायेंगे
जिन्दगी की वही तो हकीकत होगी
अच्छी पंक्तियां हैं
कविता तो लाजबाव है… हृदय की आकांक्षी उद्गार को सजीले अंदाज का रुख दिया है…मगर इसबार कुछ कहना है, इतनी सुंदर कविता जो नितांत हृदयगम्य भी है उसमें "लज्जत" शब्द नहीं जच रहा है…।कोई और शब्द दे तो पूरा व्याकरण बदल जाएगा या यों कहे की जायका!!!धन्यवाद
बहुत खूब......
घर के आईनों में उभरती नहीं
खुद अपनी सूरत साफ़गो हो कर
ख्वाव जब पत्थरों से टकरायेंगे
जिन्दगी की वही तो हकीकत होगी
दर्द से कई बार रूबरू हो कर
अब जख्मों से डर नहीं लगता
जिन्दगी कितनी भी बेवफ़ा है लेकिन
मौत कतई न ऐसी बेमुरव्वत होगी
धन्यवाद
बधाई.
मोहिन्दर जी
आपका ब्लाग देखकर बहुत खुशी हो रही है। कविताओं में गहन वेदना है ....... यह तो हमेशा से ही होता आया है कि कवि के साथ दर्द का पुराना नाता है।
नागार्जुन जी कि यह पंक्तियाँ मुझे याद आ रही है—
रति का क्रंदन सुन आँसू से
तुमने ही तो दृग धोये थे
कालिदास सच सच बतलाना
रति रोई या तुम रोये थे।
–नागार्जुन
डॉ॰ जगदीश व्योम
wah wah !!!Mohinderji aap ne bahut khoob likha hain bahut ghehrayee inmein
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