तू ही बता ऐ जिन्दगी मुझे तुझसे है क्या मिला

आदतन मैं हंसता रहा कभी किया न कोई गिला
तू ही बता ऐ जिन्दगी मुझे तुझसे है क्या मिला

कितने हंसी कितने जंवा खडे हुये थे हर मोड पर
तेरी नवाजिशों का असर न मिला मुझे वफ़ा का सिला

कितने मौसम गुजर गये इक खुशी के इन्तजार में
भेज दी तूने खिजां जब दश्ते-दिल में एक गुल खिला

राहे-सफ़र में मुसलसिल मुसाफ़िरों की भारी भीड थी
जाने फ़िर भी क्यूं लुटा सिर्फ़ मेरे प्यार का ही काफ़िला

अजनवी सा क्यों आज है जो दोस्ती का दम भरता रहा
गनीमत है कह कर नही तोडा उसने दोस्ती का सिलसिला

आदतन मैं हंसता रहा कभी किया न कोई गिला
तू ही बता ऐ जिन्दगी मुझे तुझसे है क्या मिला

7 comments:

Udan Tashtari said...

आदतन मैं हंसता रहा कभी किया न कोई गिला
तू ही बता ऐ जिन्दगी मुझे तुझसे है क्या मिला


---वाह साहब, आपने तो हमारे दिल की बात कह दी, बहुत निराले अंदाज में. दाद कबूलें.

राकेश खंडेलवाल said...

क्यों लुटा मेरे ही प्यार का काफ़िला----?

जबाब मिल जाये तो हमेम भी बतना :-)

Divine India said...

यही तो अदा है आपकी कि जो मिला है उसे नये आभाव के साथ प्रस्तुत किया है…बहुत सुंदर!!!

Admin said...

क्‍या खूब कहा है । जनाब के आदतन हसनें ने रूला ही दि‍या

Unknown said...

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योगेश समदर्शी said...

बहुत अच्छी रचना है मित्र. बधाई

रंजू भाटिया said...

राहे-सफ़र में मुसलसिल मुसाफ़िरों की भारी भीड थी
जाने फ़िर भी क्यूं लुटा सिर्फ़ मेरे प्यार का ही काफ़िला

अजनवी सा क्यों आज है जो दोस्ती का दम भरता रहा
गनीमत है कह कर नही तोडा उसने दोस्ती का सिलसिला

wah bahut jabrdast bhaavhai is ke .,..