गजल

हर कदम जो उठता है, वो सफ़र नही होता
बेखबर वो दिखता है,मगर बेखबर नही होता

चिरागे-हिज्र बुझ न जाये मेरे आने जाने से
इसी खातिर अपना तेरी राहों से गुजर नही होता

अकेला चलना लिखा किस्मत में जब मुसाफ़िर की
कारवां होते हुये भी कोई अपना हमसफ़र नही होता

एक छत और चार दीवारें नहीं अपना मकां होती
रोटियों के लिये आदमी अपने वतन से जुदा होता

हर कोई रोता है अपनी ही किसी बात की खातिर
नहीं परेशान कभी कोई किसी गैर के लिये होता

3 comments:

Uttam said...

Extremely Wonderful..

Uttam said...

Bahut dil ko choo jaati hain yeh lines

एक छत और चार दीवारें नहीं अपना मकां होती
रोटियों के लिये आदमी अपने वतन से जुदा होता

महावीर said...

बहुत ख़ूब!

चिरागे-हिज्र बुझ न जाये मेरे आने जाने से
इसी खातिर अपना तेरी राहों से गुजर नही होता