हैं रिश्तों के पुल सारे जरूरतों की खाईयों पर
है दुआ मेरी कि हर रिश्ता तुम्हें रास आये
खुले इस आसमां नीचे हर रोज डूबता सूरज
है दुआ मेरी कि सितारा तेरा न डूबने पाये
दुनिया बाग फ़ूलों का छुपाये जाल कांटों का
है दुआ मेरी कि तेरी हर तमन्ना बर आये
तलाशे हर कोई जमीं-आसमां अपने हिस्से का
है दुआ मेरी कि मंजिल चल कर तेरे पास आये
हूं मजबूर इसके सिवा कुछ भी दे नहीं सकता
है दुआ मेरी कि हर दुआ मेरी तुझे लग जाये
5 comments:
तलाशे हर कोई जमीं-आसमां अपने हिस्से का
है दुआ मेरी कि मंजिल चल कर तेरे पास आये
बहुत खूब
बहुत बढिया!
हूं मजबूर इसके सिवा कुछ भी दे नहीं सकता
है दुआ मेरी कि हर दुआ मेरी तुझे लग जाये
हैं रिश्तों के पुल सारे जरूरतों की खाईयों पर
है दुआ मेरी कि हर रिश्ता तुम्हें रास आये
वाह बहुत सुन्दर शेर है। और इसमें जीवन का बहुत बड़ादर्शन भी छिपा है। बधाई स्वीकारें।
हैं रिश्तों के पुल सारे जरूरतों की खाईयों पर
है दुआ मेरी कि हर रिश्ता तुम्हें रास आये
--bahut sunder.
bhut badhiya hai.
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