ये शिकायत नहीं होती

तुम्हें दिल में बसा कर सब कुछ पा लिया मैनें
बने मेहमां कोई दूसरा अब ये तबीयत नहीं होती

खुशी में साथ रखा था, गम में भी कर लो शामिल
यहां इक तरफ़ा रिश्तों की कोई अहमियत नहीं होती

दोस्त काम आये मुसीबत में दर्द की दवा बन कर
है ये फ़र्ज दोस्ती का, दोस्त पर इनायात नहीं होती

कोई मकसद नहीं था बस मुहब्बत हो गई तुमसे
अन्जाम तुम पर है, निभाना कोई रवायत नहीं होती

जो भी था दिल में वह तुम से कह दिया खुल कर
ये मेरा प्यार है दिलबर ये कोई शिकायत नहीं होती

5 comments:

रंजू भाटिया said...

खुशी में साथ रखा था, गम में भी कर लो शामिल
यहां इक तरफ़ा रिश्तों की कोई अहमियत नहीं होती

बहुत खूब लगी यह बात ...पसंद आई आपकी यह गजल

Unknown said...

वाह वाह । बहुत खूबसूरत गजल । मोहिन्दर जी बधाई

फ़िरदौस ख़ान said...

बेहतरीन ग़ज़ल...बधाई

शोभा said...

वाह! वाह! बहुत सुंदर.

seema gupta said...

खुशी में साथ रखा था, गम में भी कर लो शामिल
यहां इक तरफ़ा रिश्तों की कोई अहमियत नहीं होती
' wah beautiful creation'

regards