कहां जा बसे हो अपना कुछ पता दे दो
हो गई हो खता तो जो चाहे सजा दे दो
हसीन पल सारे तुम साथ ले गये अपने
न हो वास्ता जिससे वो बाकी बचा दे दो
करो आजाद हमको यादों की डोर से अपनी
गर ये नहीं मुमकिन भुलाने की दवा दे दो
जल जल के अंगारा हो गये हैं हम कब से
मुकमिल राख जो कर दे ऐसी हवा दे दो
हमसे न निभाया कभी कोई वादा तुमने
हो गये हो जिसके उसे अपनी वफ़ा दे दो
9 comments:
achha likha mohinder ji
regards
Really touchy...Good one
Anupama
हमसे न निभाया कभी कोई वादा तुमने
हो गये हो जिसके उसे अपनी वफा दे दो
बहुत खूब .........
करो आजाद हमको यादों की डोर से अपनी
गर ये नहीं मुमकिन भुलाने की दवा दे दो
बहुत खूब
भावपूर्ण बहुत सुंदर ग़ज़ल है.
bahut khoob mohinder ji
kafi achhi gazal hai
bahut sunder
हमसे न निभाया कभी कोई वादा तुमने
हो गये हो जिसके उसे अपनी वफ़ा दे दो
well said mahinder ji very Best GAZAl
मुझे याद आ रहा है ,कहीं सुना था;
तुम्हारी बेवफाई का मुझे शिकवा नही कोई
गिला तब हो जब तुमने किसी से भी निभाई हो
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