इक मजार है

जब साथ हो तू सब राहें कालीनों सी
बिन तेरे यह जिन्दगी गर्दो-गुब्बार है

हो उम्मीदों से रुसवा रिश्तों से घायल
बेओट जिन्दगी दर्दो-गम का शिकार है

अनकही बातें कितनी दिल की दिल में
ढोये आरजू जिन्दगी बनी इक कहार है

नहीं चमन हंसी का कबसे इन होंठो पर
इस जिन्दगी को अब भी तेरा इंतजार है

बना जिस्म इक ताबूत जिसमें रूह दफ़न
समझो यह जिन्दगी बस इक मजार है

5 comments:

Alpana Verma said...

अनकही बातें कितनी दिल की दिल में
ढोये आरजू जिन्दगी बनी इक कहार है

bahut khuub!

Anonymous said...

sunder ghazal

रंजना said...

बहुत सुंदर भावपूर्ण पंक्तियाँ रचीं हैं आपने.सुंदर ग़ज़ल है.

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत लाजवाब रचना ! शुभकामनाएं !

PREETI BARTHWAL said...

अनकही बातें कितनी दिल की दिल में
ढोये आरजू जिन्दगी बनी इक कहार है

बहुत खूब