नहीं मुमकिन हो वही रंग जैसा सोचा था
है जिन्दगी यह कोई सुनहरा ख्वाब नहीं
हर पल यहां अजनबी सा एक पर्दा किये
ऐ वक्त सलाम तुझे तेरा कोई जबाब नहीं
कांटों की उमर यहां गुलों से लम्बी बहुत
देर तक देख लो कहीं खिलता गुलाब नहीं
कुछ देर तक और देख लूं मैं आज उनको
सरे राह मिलना उनका कोई मजाक नहीं
मुस्तकबिल की तलाश में माझी भुलाता हूं
वेबजह कोई शक्स यूं ही तो पीता शराब नहीं
3 comments:
बढ़िया गज़ल है। खासकर कांटो की उमर वाला शेर...
कांटों की उमर यहां गुलों से लम्बी बहुत
दूर तक देख लो कहीं खिलता गुलाब नहीं
बहुत बढ़िया कहा आपने इस गजल में
हर पल यहां अजनबी सा एक पर्दा किये
ऐ वक्त सलाम तुझे तेरा कोई जबाब नहीं
कांटों की उमर यहां गुलों से लम्बी बहुत
देर तक देख लो कहीं खिलता गुलाब नहीं
waah bahut hi badhiya badhai
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