प्रेम की अनकही
परिभाषायें समझ में आयेंगी
जब देह से अनुराग का
दीप शमन हो जायेगा
मौन बीते पलों को
रोशनी के लिये रख लीजिये
शोर सारा साथ मेरे
अंधेरों में दफ़न हो जायेगा
किसने सोचा था कि
सारे रंग सफ़ेद हो जायेंगे
लाल जोडा दुल्हन के लिये
इक कफ़न हो जायेगा
बैठ कांटों की सेज पर
फ़ूलों का चर्चा कीजिये
कुछ देर के लिये बेचैन मन
फ़िर से चमन हो जायेगा
अहम लिपटा बात को फ़िर
चाहे जितना भी बढा लीजिये
खैर सबकी सोचिये तो
खुदबखुद अमन हो जायेगा
5 comments:
बहोत ही सुंदर कविता लिखी है आपने बहोत खूब डरो बधाई कुबूल करें..
अपने नई ग़ज़ल पे आपकी इक्षा जाहिरी चाहूँगा.
अर्श
अहम लिपटा बात को फ़िर
चाहे जितना भी बढा लीजिये
खैर सबकी सोचिये तो
खुदबखुद अमन हो जायेगा
बहुत सुंदर कविता लगी आपकी यह मोहिंदर जी
किसने सोचा था कि
सारे रंग सफ़ेद हो जायेंगे
लाल जोडा दुल्हन के लिये
इक कफ़न हो जायेगा
'हर शेर अपनेआप में बेमिसाल है मगर इस शेर ने बरबस ध्यान अपनी और खिंच मन को व्याकुल कर दिया "
regards
किसने सोचा था कि
सारे रंग सफ़ेद हो जायेंगे
लाल जोडा दुल्हन के लिये
इक कफ़न हो जायेगा
wah Mohinder ji bhot gahri bat kah di....
प्रेम की अनकही
परिभाषायें समझ में आयेंगी
जब देह से अनुराग का
दीप शमन हो जायेगा
मौन बीते पलों को
रोशनी के लिये रख लीजिये
शोर सारा साथ मेरे
अंधेरों में दफ़न हो जायेगा
बहुत ही सहज ,सार्थक एवं सफल अभिव्यक्ति.
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