दूर से, देर तलक हसरत से देखा जिसको
हो चुके थे वो किसी गैर के न जाने कबसे
कभी मुड कर न देखा है कौन हमारे पीछे
तेरी परछाई से नाता रहा तुम मिले जबसे
इसका रंज नहीं कि तुम अब हमारे न रहे
हम किसी काबिल नहीं ये क्यूं कहा सबसे
आंख का यकीं न दिल का अब ऐतबार रहा
दर्द की दास्तां का मुश्किल चर्चा अपने लबसे
थी मुहब्बत, बस कर लिया शिकवा तुमसे
देखा न गया हसरतों का सिसकना हमसे
7 comments:
बहुत सुन्दर गज़ल है। बहुत दिनों बाद पढ़ी आपकी गज़ल।
शायद पहली बार आपका ब्लोग देखा है बहुत सुन्दर गज़ल है बहुत बहुत बधाई
क्या बात है जनाब!! बहुत उम्दा!
Waah ! sundar gazal !
badhai swikaren.
इसका रंज नहीं कि तुम अब हमारे न रहे
हम किसी काबिल नहीं ये क्यूं कहा सबसे
बहुत खूब जी .बढ़िया लिखा
बहुत सुंदर। आपकी गज़ल ने तो दिल छू लिया।
बहुत ही सुंदर गजल, धन्यवाद
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