रफ़्तार तुंफ़ा की देख कर
मुझे लगा
हो न हो
इसे रास्ता पता है
मैं क्या जानता था
ये बांबरा भी
किसी को ढूंढता है
दूर दूर तक जब
मंजिल न दिखी तो
उससे पूछ बैठा
क्या सोच कर वह
चला जा रहा है
बेदर्दी से किसलिये
सब को रौंदता है
सुन कर हंसा वो
और फ़िर यह बोला
मेरे लिये
गर्दो गुब्बार जिन्दगी है
रुकना है मौत मेरी
रफ़्तार जिन्दगी है
मुझको बता दो तुम ही
खुदबखुद कौन खुद को
मिटाना चाहता है
जो आते मेरी हद में
यह उनकी बदनसीबी
न किसी से दोस्ती है
न किसी से दुश्मनी ही
मैं भी चाहता हूं
कोई हाथ मेरा थामे
देखना है कौन मेरी
रफ़्तार थामता है
7 comments:
रफ़्तार तुंफ़ा की देख कर
मुझे लगा
हो न हो
इसे रास्ता पता है
मैं क्या जानता था
ये बावरा भी
किसी को ढूंढता है
यह पंक्तियाँ विशेष पसंद आई
एक दर्शन लिए हुए सुन्दर कविता लिखी है। बधाई
Waah!!! lajawaab baat...
sundar kavita...
बहुत ही सुंदर बस चलना ही जिन्दगी है, कविता के माध्यम से बहुत सुंदर संदेश दिया आप ने धन्यवाद
जीवन चलने का नाम।
और जब चलेंगे, तो रफतार तो आएगी ही।
शानदार और जीवनी तत्व से भरपूर कविता के लिए बधाई।
कम शब्दों में सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई।
sundar abhivyakti hai, naya pan liya
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