तुमसे है यार जिन्दगी
जब तलक तुम न आये
राह तकते थे दर
बाट जोहती खिडकियां
पैर पडते ही तुम्हारा
हुई वंदनवार जिन्दगी
तुमसे है यार जिन्दगी
तुम आये तो
काली रातों ने पहना
शबनमी लिबास
और खिल कर हुई
प्यार प्यार जिन्दगी
तुमसे है यार जिन्दगी
तुमको पा कर ये लगा
है बहुत कुछ जीने के लिये
जितना सोचा था
उतनी नहीं
बे-ऎतवार जिन्दगी
तुमसे है यार जिन्दगी
अब न करना तुम कभी
फ़िर चले जाने की बात
इल्तजा कर मौत से
मांगी है उधार जिन्दगी
तुमसे है यार जिन्दगी.
7 comments:
kaali raat ne odha shabnum,waah bahut sunder rachana.
बहुत सुन्दर लगी आपकी यह रचना
तुम आये तो
काली रातों ने पहना
शबनमी लिबास
और खिल कर हुई
प्यार प्यार जिन्दगी
बहुत सही बात कही
मोहिन्दर जी एक बार फिर से बेहतरीन रचना , बधाई ।
बहुत ही उम्दा और सुन्दर रचना!! बधाई, मोहिन्दर भाई!!
महेन्दर जी एक सुंदर ओर बहुत ही प्यारी रचना.
धन्यवाद
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Jai..Ho...
mohinder ji , kitni sundar kavita likhi hai .. badhai ho
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