विरह का सुल्तान - शिव कुमार बटालवी





शिव कुमार बटालवी (ਸ਼ਿਵ ਕੁਮਾਰ ਬਟਾਲਵੀ) - (23 जुलाई 1936 - 7 मई 1973) पंजाबी भाषा के मशहूर कवि / शायर हुये हैं जिन्हें उनकी रोमांटिक, विरह एंव दर्द की रचनाओं के लिये सदा याद किया जाता रहेगा.

1967 में साहित्य अकादमी पुरुस्कार जीतने वाले वह सबसे कम आयु के कवि बने. उन्हें यह पुरुस्कार उनकी रचना "पूरन भगत - लूना" जो कि एक ऐतिहासिक कविता का रूप है, के लिये दिया गया. यह रचना आधुनिक पंजाबी साहित्य की मास्टरपीस रचना मानी जाती है. उनकी रचनाओं को मोहन सिंह और अम्रिता प्रीतम की रचनाओं के बराबर माना जाता है जो कि भारत-पाकिस्तान सीमा रेखा के दोनों तरफ़ एक जैसी लोकप्रिय हैं.

शिव कुमार का जन्म 23 जुलाई, 1936 (कुछ लोग उनका जन्म अक्टूबर 1937 का मानते हैं) के दिन गांव बरा पिंड लोहटियां, तहसील शकरगढ जो कि अब पाकिस्तान में है, पंडित कृष्ण गोपाल जी के घर पर हुआ. पंडित कृष्ण गोपाल जी तहसीलदार थे एंव इनकी माता शांतिदेवी एक गृहणी थी. भारत पाकिस्तान बंटवारे के बाद इनका परिवार बटाला जिला गुरदासपुर में स्थानान्तरित हो गया.

शिव कुमार ने अपनी मेट्रीकुलेशन 1953 में पंजाब यूनिवर्सिटी से उत्तीर्ण की और एफ़.एस.सी प्रोग्राम के लिये यूनियन क्रिस्चन कालेज, बटाला में दाखिला लिया परन्तु डिग्री पूरी करने से पहले ही उन्होंने एस एन कालेज क्वादियां में आर्टस प्रोग्राम में दाखिला ले लिया परन्तु इसे भी उन्होंने द्वतीय वर्ष में बीच में ही छोड दिया. इसके बाद उन्होंने बेजनाथ, हिमाचल प्रदेश में सिविल इंजिनियरिंग डिपलोमा के लिये दाखिला लिया परन्तु इसे भी उन्होंने बीच में ही छोड दिया. कुछ समय के लिये उन्होंने सरकारी रिपूदमन कालेज, नाभा में पढाई की. वह मशहूर पंजावी रचनाकार गुरबक्शसिंह की पुत्री के साथ प्रेम में पड गये जिसका विवाह जातिगत कारणों से कहीं अन्यत्र हो गया. प्रेम में आहत होने का असर शिव कुमार बटालवी की रचनाओं में साफ़ झलकता है हालांकि उन्होंने एक व्यक्तिगत इन्टर्व्यू के दौरान इस बात से इन्कार किया है कि उन्हें विरह का कोई गम है.  इस इन्टर्व्यू को आप यू ट्यूव के    इस लिन्क  प्पपर देख सकते हैं.

शिव बटालवी की पहला कविता संग्रह 1960 में  "पींडा दा परागा" ( The Scarf of Sorrows) शीर्षक से प्रकाशित हुआ जिसके तत्काल प्रसिद्धि प्राप्त हुई.  1965 में इन्हें साहित्य अकादमी पुरुस्कार से नवाजा गया.

1967 में इनका विवाह अरुणा जो कि एक ब्राह्मण कन्या थी के साथ हुआ. इनके दो बच्चे मेहरवान (1968) और पूजा (1969) हुये. 1968 में यह चंडीगढ आ गये जहां इन्होंने स्टेट बेंक आफ़ इंडिया में प्रोवेशनरी आफ़िसर के पद पर ज्वाईन किया. आने वाले समय में इनका स्वास्थय बिगडता गया परन्तु इनका लिखना जारी रहा.  इनकी रचनाओं में मौत को बुलावा स्पष्ट रूप से झलकता है. 7 मई, 1973 के दिन अपने ससुराल में ही इन्होंने अपनी देह त्यागी.  36 वर्ष की आयु में असमय मृत्यु का कारण रहा अत्याधिक शराब का सेवन जिससे उनका लीवर खराब हो गया था.

शिव बटालवी की रचनायें

"पीडां दा परागा" Piran da Paraga (The Scarf of Sorrows) (1960)
"मैनूं विदा करो" Mainu Vida Karo (Bid Me Farewell) (1963)
"गजलां ते गीत" Gazlan Te Geet
"आरती" Aarti (Prayer) (1971)
"लाजवंती" Lajwanti (Touch Me Not) (1961)
"आटे दियां चिडियां" Atte Dian Chirian (The Sparrows of Flour) (1962).
"लूना" Loona (1965)
"मैं ते मैं" Main Te Main (I and Me) (1970)
"दर्दमंदा दियां आहां सोग"Dardmandan Dian Aahin Sog
"अलविदा" Alvida (Farewell) (1974)
"शिव कुमार : संपूर्ण काव संग्रह"
"विरहा दा सुल्तान" Selected poetry of Shiv Kumar Chosen by Amrita Pritam


शिव बटालवी ने अपनी रचनाओं को स्वयं भी स्वर दिये हैं.  इसके इलावा उनकी रचनाओं को बहुत से गायकों ने अपनी आवाज दी है जिनमें    जगजीत सिंह-चित्रा सिंह,     सुरिन्दर कौर,     नुसरत फ़तेह अली खां,       हंस राज हंस,   शेरगिल्ल रब्बी,     

आशा सिंह मस्ताना.

आप उनकी इन रचनाओं को यू ट्यूब के उपरोक्त लिन्कस पर सुन सकते हैं.

समय बीत जाता है... अतीत को हम पुन: वापिस नहीं ला सकते परन्तु उससे जुडे हर तार भी हमें अतीत को एक बार फ़िर से देखने का अवसर देते हैं.   शिव बटालवी जी के परिवार की इक तसवीर

श्री मति अरुणा बटालवी अपने पुत्र और पुत्रवधु के साथ
फ़ोटो -  राजेश सच्चर

1 comment:

Udan Tashtari said...

बहुत अच्छा लगा शिव कुमार बटालवी जी के विषय में पढ़कर. इस शक्सियत के बारे में जितना पढ़ो, जितना सुनो, कम ही होता है.