चार पंक्तियां

खून से लिखा हो या लिखा हो सियाही से
भला "वफ़ा" के माईने कहां बदलते हैं
लगा के आग खुद ही हसरतों में अपनी
हम दिवाने अंधेरों के लिये जला करते हैं


3 comments:

Pratik Maheshwari said...

वाह वाह!
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति..

Amit Chandra said...

behad khubsurat andaz.

महेन्‍द्र वर्मा said...

बहुत खूब.
इन चार पंक्तियों में बहुत बड़ी बात कह दी आपने...बधाई।