पलकों के छोर पर

तुम मिले भी तो किस मोड पर
जब चल पडा मैं सब छोड कर

अब न दुनिया की मुझे है फ़िक्र
आराम से लेटा कफ़न ओढ कर

इक लपट और फ़िर रोशन सब
अंधेरों का हर गुमान तोड कर

राख पर आंसू न बेकार बहाना
यादें सहेजना पलकों के छोर पर

2 comments:

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

इक लपट और फिर रोशन सब

अंधेरों का हर गुमान तोड़कर

मार्मिक ग़ज़ल ....

रश्मि प्रभा... said...

राख पर आंसू न बेकार बहाना
यादें सहेजना पलकों के छोर पर
bahut badhiyaa