तुम मिले भी तो किस मोड पर
जब चल पडा मैं सब छोड कर
अब न दुनिया की मुझे है फ़िक्र
आराम से लेटा कफ़न ओढ कर
इक लपट और फ़िर रोशन सब
अंधेरों का हर गुमान तोड कर
राख पर आंसू न बेकार बहाना
यादें सहेजना पलकों के छोर पर
जब चल पडा मैं सब छोड कर
अब न दुनिया की मुझे है फ़िक्र
आराम से लेटा कफ़न ओढ कर
इक लपट और फ़िर रोशन सब
अंधेरों का हर गुमान तोड कर
राख पर आंसू न बेकार बहाना
यादें सहेजना पलकों के छोर पर
2 comments:
इक लपट और फिर रोशन सब
अंधेरों का हर गुमान तोड़कर
मार्मिक ग़ज़ल ....
राख पर आंसू न बेकार बहाना
यादें सहेजना पलकों के छोर पर
bahut badhiyaa
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