तेरी मुहब्बत की खुश्बू है अब भी साथ मेरे
आ देख मैं तन्हाई में भी अब तन्हा नहीं हूं
ठोकरें सफ़र की इस कदर भा गई दिल को मेरे
मंजिलों को तरसता है जो मैं वो रास्ता नहीं हूं
हिर्ज हो या विसाल एक सा रुतबा है दिल में मेरे
सिर्फ़ बहारों में जो है खिलती वो वगिया नहीं हूं
जज्ब करने का हुनर भी आ गया है अब मुझे
दामन भिगोये जो किसी का वो कतरा नहीं हूं
हैरत में क्यों पड गये तुम आज इस हाल पर मेरे
मैं सिर्फ़ मैं हूं अब किसी का कोई वास्ता नहीं हूं
तेरी मुहब्बत की खुश्बू है अब भी साथ मेरे
आ देख मैं तन्हाई में भी अब तन्हा नहीं हूं
5 comments:
जज्ब करने का हुनर भी आ गया है मुझे
दामन भिगोये जो किसी का वो कतरा नहीं हूँ
उम्दा शेर......अच्छे भाव
वाह क्या भावो को पिरोया है………बेहतरीन्।
हैरत में क्यों पड गये तुम आज इस हाल पर मेरेमैं सिर्फ़ मैं हूं अब किसी का कोई वास्ता नहीं हूं..
बहुत सुन्दर भाव...बहुत सुन्दर रचना..
इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई ।
बहुत सुंदर जी, धन्यवाद
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