तू ही बता ऐ जिन्दगी मुझे तुझसे है क्या मिला

आदतन मैं हंसता रहा कभी किया न कोई गिला
तू ही बता ऐ जिन्दगी मुझे तुझसे है क्या मिला

कितने हंसी कितने जंवा खडे हुये थे हर मोड पर
तेरी नवाजिशों का असर न मिला मुझे वफ़ा का सिला

कितने मौसम गुजर गये इक खुशी के इन्तजार में
भेज दी तूने खिजां जब दश्ते-दिल में एक गुल खिला

राहे-सफ़र में मुसलसिल मुसाफ़िरों की भारी भीड थी
जाने फ़िर भी क्यूं लुटा सिर्फ़ मेरे प्यार का ही काफ़िला

अजनवी सा क्यों आज है जो दोस्ती का दम भरता रहा
गनीमत, कह कर नही तोडा उसने दोस्ती का सिलसिला

आदतन मैं हंसता रहा कभी किया न कोई गिला
तू ही बता ऐ जिन्दगी मुझे तुझसे है क्या मिला

4 comments:

Amit Chandra said...

हरेक शेर पर दिल वाह वाह करने को कह रहा है। आपकी लेखनी को शत शत नमन।

Kailash Sharma said...

लाज़वाब...हरेक शेर बहुत उम्दा

Udan Tashtari said...

वाह!! बहुत बेहतरीन मोहिन्दर भाई!!

राज भाटिय़ा said...

हमेशा की तरह बेहतरीन गजल, धन्यवाद