थोडा रुक जाओ

अनुबंधों के रिश्तों में
ख्वाब कहां बंट पाते हैं
खुशियां चाहे सांझी हों
पर दर्द छुपाये जाते हैं

अभी अभी मिले हो मुझसे
नाम केवल मेरा जाना है
हाथों से बस हाथ मिले हैं
मुझे अभी कहां पहचाना है

धीर धरो थोडा रुक जाओ
वक्त को मरहम हो जाने दो
अभी नहीं भूला कल मुझे अपना
कल को थोडा ढल जाने दो

हो पाया तो बांटेंगे हम तुम
कल वो अपना, ख्वाब वो अपने
बहा पीडा आंखों की सारी
भूल अभी तक देखे सारे सपने

9 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खूबसूरती से मन के भावों को लिखा है ..सुन्दर प्रस्तुति

vandana gupta said...

्खूबसूरत भावाव्यक्ति।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

सुंदर रचना .....हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ

Madhu Tripathi said...

dil ko chhune wali bate hai

Madhu Tripathi said...

marm sparshi bate aur bhav se bhari abhivyakti

ana said...

bahut sundar ....shabda shabda arthpurna

ana said...

bahut sundar ....shabda shabda arthpurna

induravisinghj said...

सुंदर रचना...

Madhaw said...

behad bhavpurna