ऐ बादल

ऐ बादल

क्या किसी विरहन के ह्र्दय का ताप है तू

या किसी प्रेमी के असुअन की भाप है तू

ऐ बादल

क्या नीर से प्रीत है तेरी

या बूंदों से बैर है तेरा

किस चातक की प्यास है तू

ऐ बादल

मरू हैं तेरी बाट जोहते

तू बरसता किसी ताल पर

कब जानेगा किस किस की आस है तू

ऐ बादल

उमढ घुमड कर नभ पर छा जाता है

फ़िर बिन बरसे ही छितरा जाता है

क्या किसी जोगी के मन का आलाप है तू

ऐ बादल

10 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

ऐ बादल
उमढ घुमड कर नभ पर छा जाता है

फ़िर बिन बरसे ही छितरा जाता है

क्या किसी जोगी के मन का आलाप है तू

खूबसूरत रचना ..अच्छी अभिव्यक्ति

vandana gupta said...

मरू हैं तेरी बाट जोहते

तू बरसता किसी ताल पर

कब जानेगा किस किस की आस है तू

वाह बेहद उम्दा भावाव्यक्ति।

विभूति" said...

सुन्दर रचना...

सागर said...

sundar prstuti....

वाणी गीत said...

बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने किस राह से बचना है , किस छत को भिगोना है !
सुन्दर !

सदा said...

बहुत ही बढि़या ...

Asha Lata Saxena said...

बादल किसी विरहण के ह्रदय का ताप है बहुत सही लिखा है बधाई |
आशा

Dr (Miss) Sharad Singh said...

बहुत सुन्दर भीगी-भीगी-सी भावाभिव्यक्ति....

induravisinghj said...

सुंदर अभिव्यकित...

Madhu Tripathi said...

mohi ji
is abhivyakti ke liye aapko puruskar milna chahiy
madhu tripathi
http://kavyachitra.blogspot.com