गजल

वकालतें कर रहे लोग, इधर से उधर से
अब क्या पानी तो गुजर गया है सर से

बहुत ऊंचीं उडा्ने भरने लगे थे परिन्दे
इक आंधी क्या चली छुप गये डर के

कतरे को दिखा दी औकात एक पल में
समंदर सी बातें करता था अपने घर में

कौन पूछे उस से इस बारे में पलट के
फ़ैसला तो आया है आसमां से उतर के

लौटगीं फ़िर चमन में बहारें यह तय है
सीखेंगे क्या खिंजां से इसकी फ़िकर है


मोहिन्दर कुमार


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