ये परिन्दे खुले आसमानों के
शाख से कब दिल लगाते हैं
सफ़र की थकन दूरे होते ही
फ़िर हवाओं में लौट जाते हैं
फ़ूल पत्तों से शान गुलशन की
घने हरे पेड जान गुलशन की
सच फ़िर भी यही सब जाने हैं
तिनके घौंसलों में काम आते हैं
खिलते फ़ूलों पर है नजर सबकी
भंवरे तितली उन पर मंडराते हैं
मगर उन कांटों के हिस्से क्या
बाड बन कर उन्हें जो बचाते हैं
हर कोई ढूंढता है हंसी में खुशी
जीत की चाह हर किसी में रही
बात दीवानों की यहां है अलग
सब हार कर ही सकून पाते हैं
मोहिन्दर कुमार
1 comment:
बहुत खुबसूरत एहसास पिरोये है अपने......
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