ख्वाब चुभते हैं आंखों में मेरी - गजल

ख्वाब चुभते हैं आंखों में मेरी
क्या करूंगा मैं चैन से सो कर

दिल में पाला था इक जज्वा
पड गया पीछे वो हाथ धो कर

इन लबों को तब्बसुम है भाता
सिर्फ़ आहें भरोगे मेरे हो कर

नसीब में अपने सिर्फ़ कांटे हैं
देख लिया है फ़ूल भी बो कर

यह दर्द थमेगा लाईलाज हो कर
मिलेगा चैन मुझे सब खो कर

 
मोहिन्दर कुमार

No comments: