साथ गुजारे लम्हात भी नही सताते उसको
वक्ते फ़ुर्सत भी हम याद नहीं आते उसको
सरेशाम कांधे पर सर रख जो किया वादा
खुदा जाने क्यों आज नही निभाते उसको
कभी मेरी बातों पर बिखेरते थे अपनी हंसी
अब मेरे लफ़्ज किसी तरह न लुभाते उसको
आसमां को छत होते देखना चाहा था जिसने
टूटते तारे न जाने क्यों है आज डराते उसको
No comments:
Post a Comment