अपने बच्चोँ मेँ तो
हम सब की जान बसती हैनजर क्योँ नहीँ आता
फिर कोई खाली पालना हमको
तस्वीर दुनिया की
भला ऐसे क्यूँ कर बदलेगीगरीबी पर तरस खा आता
सिर्फ इक रोटी भर डालना हमको
हमारी नीँद गहरी है
कि उनके स्वप्न हैँ कच्चेना जाने क्योँ नहीँ आता
गिरते को सहारा दे सम्भालना ह्मको
जिस तरह से आता है
आज को कल पर टालना हमको
उस तरह से काश आता
पराये का काँटा निकालना हमको
मोहिंदर कुमार
2 comments:
बेहतरीन अभिवयक्ति.....
वाह...बहुत बढ़िया रचना...आप को मेरी ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...
नयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-कुछ हमसे सुनो कुछ हमसे कहो
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