अभिव्यक्ति



चेहरे पर पढलो
मन के उदगारों को
अल्प जीवन की मधुर बेला
कहीं बीत न जाये
उलझन में

चेहरे पर पढ लो
मन के उदगारों को

जो क्षण तुम पर
आज समर्पित हैं
कल किस ठौर
वो जा पहुंचें
मैं बंधा रहूं
किसी लक्ष्मण रेखा से
और तुम कह न सको
जो है मन मे

चेहरे पर पढ लो
मन के उदगारों को

पल पल बदलती
मान्यताओं की
तुम ओट न ले पाओगी
जीवन भर
जो बीत गया
से बिसरा कर
समेट लो खुशियां
आंचल में

चेहरे पर पढलो
मन के उदगारों को
अल्प जीवन की मधुर बेला
कहीं बीत न जाये
उलझन में

मोहिन्दर

1 comment:

रंजू भाटिया said...

जो बीत गया
से बिसरा कर
समेट लो खुशियां
आंचल में

चेहरे पर पढलो
मन के उद्गगारों को
अल्प जीवन की मधुर बेला
कहीं बीत न जाये
उलझन में

bahut khoob likhte hain aap