मेरा खत


हर लफ्ज मुहब्बत के रंग में डूबा था
वो मेरा खत आखिर जलाता तो जलाता कैसे
आंखों कि बरसात के सिवा वो कुछ कर ना सका
आग दिल की आखिर वो बुझाता तो बुझाता कैसे

वो जो रोया तो आंख मेरी भी लाल हुई
वो जो तडफा तो रूह मेरी भी बेहाल हुई
ऐसे जुडे हैं मेरे दिल के तार उस के दिल के तारों से
मौत मांग तो लूं मगर उस को बचाता कैसे

वो तो नादान है, नही जानता मुहब्बत के उसूल
हो उस कि रुसवायी, इससे तो मुझे जुदायी ही कबूल
यूं तो दुनिया में नही बहानों की कमी
सच्ची चाहत है मेरी, मैं बहाना बनाता कैसे

मोहिन्दर



1 comment:

Anonymous said...

वो जो रोया तो आंख मेरी भी लाल हुई
वो जो तडफा तो रूह मेरी भी बेहाल हुई
ऐसे जुडे हैं मेरे दिल के तार उस के दिल के तारों से
मौत मांग तो लूं मगर उस को बचाता कैसे
Mohinder..bahut dard hai app ki ghazalon mein..
Your fan& freind...Ravinder