न किसी से सवाल कर
न किसी से जवाब मांग
मायुसी हाथ आयेगी
चल हर बला को टाल कर
मुफलिसी के दौर में
महफिलों से गुरेज़ कर
साख डूब जायेगी
साख को बहाल कर
बिजलियों को छोड कर
चांदनी सहेज ले
खुद को तू आग से बचा
न दामन को तार तार कर
हर हंसी, हंसी नहीं
मुस्कराहटों पर तू न जा
रहे गम चाशनी में लिपट
न कुछ तू मलाल कर
2 comments:
मोहिन्दर जी,
कविता तो हमेशा की तरह सजीव है…किंतु यह दुनियाँ ऐसी है कि बिना सबाल के लोग आपको टालते जाते है…व्यक्ति एक प्रकाश है और प्रकाश की होती है हर मौजूद आसरे तक पहुँचना!!
मोहिन्दर जी,
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