दिल वीराना

किसी अपने को भूल जाने मेँ एक जमाना लगता है
जिसको तुम छुपा रहे हो वो जख्म पुराना लगता है

खुशियोँ के पल चमका देते है फिर धुँधली तस्वीरोँ को
दुनियाँ से जाने वालोँ का दिल मेँ ठिकाना लगता है

जख्म यूँ तो भर जाते हैँ टीस मगर फिर रह जाती है
पीछे मुड कर जब भी देखा कल का फसाना लगता है

टूटे दिल मेँ सिवा दर्द के और भला क्या ढूँढ रहे हो
दर्द ना हो तो दीवाने को यह दिल एक वीराना लगता है

शीशे के इस शहर मेँ क्यूँकर यहाँ कोई पत्थर ढूँढ रहा है
अजनबी है शायद कोई, या फिर कोई अन्जाना लगता है

1 comment:

रंजू भाटिया said...

वाह !!

जो बीत गया वक़्त का साया
वो अब अन्जाना लगता है
तेरे मेरे प्यार का क़िस्सा
अब अफ़साना लगता है
मत डरना मेरे लिखे लफ़्ज़ो से
यह गीत अब दिल का तराना लगता है!!

ranju