उम्मीद का चिराग



मैने दुनिया से तेरी दोस्ती का भ्रम बनाये रखा
बेसबब हंसता रहा और दर्द दिल में दबाये रखा

जिस मुहब्बत ने शिकायत के सिवा कुछ न दिया
मुस्लसिल सींचा उसे और गुलदार बनाये रखा

कुछ तो चाहिये था इस जिन्दगी को जीने के लिये
बीते लम्हों की यादों से इस दिल को बहलाये रखा

तेरी खुशी का हमेशा रहा है मेरे रंज से ऊंचा मुकाम
थी खबर मुझे को, मैने भी, ये फ़ासला बनाये रखा

आखिरी बार जाते हुये मुड कर था देखा उसने
बस इसी खातिर उम्मीद का चिराग जलाये रखा

5 comments:

सुनीता शानू said...

सबसे पहले सबसे अच्छी पंक्ति जो मुझे बेहद पसंद आई..
आखिरी बार जाते हुये मुड कर था देखा उसने
बस इसी खातिर उम्मीद का चिराग जलाये रखा
बहुत ही आशावादी है आप आज नही तो कल मुड़कर देखा है तो शायद लौट के आ ही जायें...:)

कुछ तो चाहिये था इस जिन्दगी को जीने के लिये
बीते लम्हों की यादों से इस दिल को बहलाये रखा
बहुत खूब! वाह! कुछ तो चाहिये था जीने के लिये...

बहुत सुंदर दिल को छू ले एसी गजल है...

शुभकामनाएं
सुनीता(शानू)

Reetesh Gupta said...

अच्छा लगा पढ़कर ....बधाई

Uttam said...

Is gazal mein baat hai..

तेरी खुशी का हमेशा रहा है मेरे रंज से ऊंचा मुकाम
थी खबर मुझे को, मैने भी, ये फ़ासला बनाये रखा

Yeh line mujhe bhaa gain..
Accha ehsaas hai
Mujhe chahe gum mile, dilbar ki aankhe nam nahon..

राकेश खंडेलवाल said...

मोहिन्दरजी,

भाव संयोजब अच्छा है. निखर रही है आपकी कलम. धार और बनायें यही कामना है

कंचन सिंह चौहान said...

बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति, मन को छू जाने वाली रचना