इन्सानियत से प्यार कर

खून की प्यास है तो हैवानो को निशाना बना
खुद न हैवान बन, मासूमों का न लहू बहा

दिल में तेरे शौक है बारूद से खेलने का अगर
पहन पौशाक फौजी की, चल अपना सीना फुला

मौत आ भी जाए अगर,लोग न तुझे बह्शी कहें
बनना है तो शहीद बन, पीठ पर न गोली खा

किस किताब में लिखा है कि तेरा मजहब अव्वल है
इन्सानियत से प्यार कर, इन्सानियत पर सब लुटा

टुकडे ये जमीन के कौन साथ लेकर अब तक गया
वक्त ने मिटा डाले हैं पत्थरों तक पर लिखे निशाँ

फैसले की घडी को याद रख कर काम को अँजाम दे
बोझ दिल पर लेकर कैसे करेगा अपनी बेगुनाही बयाँ

4 comments:

रंजू भाटिया said...

किस किताब में लिखा है कि तेरा मजहब अव्वल है
इन्सानियत से प्यार कर, इन्सानियत पर सब लुटा

टुकडे ये जमीन के कौन साथ लेकर अब तक गया
वक्त ने मिटा डाले हैं पत्थरों तक पर लिखे निशाँ

बहुत ही सुंदर और आज के वक़्त पर बिल्कुल सही लिखा है ..मोहिंदर जी आपने

Udan Tashtari said...

पता नहीं मगर मुझे यह रचना कुछ बिखरी सी लगी-भाव अच्छे है फिर भी. शायद मैं ही ठीक से न देख पाया हूँ.पुनः प्रयास करुँगा. लिखते रहें.

सुनीता शानू said...

मोहिन्दर जी बहुत सुन्दर गीत है जीवन में कुछ करने की व सीखने की प्रेरणा देता हुआ प्रतीत होता है...

सुनीता(शानू)

Divine India said...

मोहिंदर जी,
अब तो लगता है अग्नि की ज्वाला को लेकर आप सीधे मैदान में आ गये हैं :) :)
मगर कविता के भाव बहुत सुंदर है पर लय का अभाव है जो मुझे उतना नहीं टटोल सका…।
आपकी प्रत्येक रचना बिल्कुल अलग होती है तो हो सकता है पर जिस संबेदना को हमने महसूस किया है वह आपकी कविता में ना मिले तो मन सिकुड़ जाता है…।