धनीराम की फ़ूंक सरक गयी
देख यम सवारी को
देख यम सवारी को
सोचा ना था कभी स्वपन में
इतनी जल्दी अपनी बारी को
बोला प्रभो, आने से पहले
कोई संदेशा भिजवाया होता
जो थोडे से काम बचे थे
मैने उनको निपटाया होता
होले से मुस्करा कर बोले यम
झूठ बोलते हो धनीराम तुम
हमने तीन संदेश पहले भिजवाये
मूर्ख प्राणी बस तुम समझ न पाये
धनीराम रोते रोते घिघयाया
प्रभो, नहीं पहले, कोई संदेशा आया
ऐसा होता तो मैं रहता तैयार
बस बक्श दीजिये मुझको इस बार
यम बोले लोभवश रहा तू अन्धकार में
केवल धन कमाया तूने इस संसार में
दुख-दर्द में तू किसी के काम न आया
मेरे संदेशों को भी तू समझ न पाया
पहला संदेशा था जब बाल हुये सफ़ेद
यौवन और बुढापे में जो है मुख्य भेद
फ़िर भी तू न कुछ समझा ऐ नादान
आगे क्या होगा इससे रहा अन्जान
दांत गिरे एक-एक कर तेरे बारी बारी
दूजा संदेशा था कि कर चलने की तैयारी
अपने कामों में था तू इतना उलझा
समझ न पाया इक संदेश सीधा सुलझा
फ़िर गिरा सुख नैयनो पर धुंधलेपन का पर्दा
संदेश तीसरा, चुका ले जो भी रह गया कर्जा
धनीराम अब तो है तुझे लेने आया तेरा काल
यम न माने कोई मनौती, न चलती कोई चाल
मान हर पल को अन्तिम पल, तुम पग धरना
कौन सांस हो अन्तिम, करले अब जो है करना
काल का दंश तो एक दिन आखिर सब को डसता
सुकर्म हों, जब जाये जग से प्राणी, जाये हंसता हंसता
सुकर्म हों, जब जाये जग से प्राणी, जाये हंसता हंसता
9 comments:
सही है :)
हमारे वाले में क्रम बदल कर चिटिंग हो रही है-पहला बाल सफेद वाला आ गया है. दूसरे नम्बर पर आँख का धुंधलापन टिका दिया. दाँत वाला मैसे ज आयेगा तो न?? कि कहीं स्किप करके अब डायरेक्ट आखिरी वाला??
-बहुत डरावनी कविता लिखने लगे हैं आप आजकल. :)
सही है सर… मजेदार
अच्छा लगा पढ़कर ....बधाई
अच्छा लगा ये रंग आपका
काल का पहिया बडा ही भयानक रूप ले लेकर छोटे छोटे सन्देश भेजता है ,फिर स्वयम ही विकराल रूप लेकर आ जाता है.
एक अच्छी बानगी पेश कर दी कविता में आपने,यह भी छोटे पहिये की तरह एक चेतावनी है.
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वाह मोहिन्दर जी इतनी सुन्दर कविता
आप भी लगता है विदेश यात्रा से आये हो...
क्या यमराज से साँठ -गाँठ कर लाये हो...
मेरे ब्लोग पर आकर लेते है मुझसे पंगा...
क्यो नही धोते हाथ जब बहती है गंगा...
हा हा हा
वैसे अच्छा लगा...हास्य में आपकी टिप्पणी और हँसा गई...
सुनीता(शानू)
बहुत ख़ूब :):)
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