महज ख्याल है

कभी चिराग से
रोशनी का गिला मत करना
जिस्म तो जल रहा है
रूह भी जल जायेगी

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दो दिन के लिये फ़ूल का खिलना
और छोटी सी तितली की उडान
वक्त को मापना क्यों हर पल
गुलशन यूंही आबाद हुआ करते हैं

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ता-उम्र अश्क बहा कर हमने
आंखों की बिनाई खोयी
पर न वो जान सका
किसने दामन की सियाही धोयी

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दोस्ती सिर्फ़ लफ़्ज रहेगा
ये तो सोचा न था
प्यार सिर्फ़ फ़र्ज रहेगा
ये तो सोचा न था
अब भी कितने दूर हैं हम तुम
फ़ासला ऐसा रहेगा
ये तो सोचा न था
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शतरंज में सबसे छोटा मोहरा
"पैदल"
यह सोच कर
बिसात पर चलता है
कट गया तो क्या
कुछ नही औकात मेरी
और अगर पहुंचा उस ओर
वजीर बन कर
बाजी पलट सकता हूं
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रूक ऐ वादे सवा
किसकी खुशबू हो समेटे
मैं पहचान तो लूं
कितने दूर है वो मुझ से
ये मैं जान तो लूं

4 comments:

कंचन सिंह चौहान said...

कभी चिराग से
रोशनी का गिला मत करना
जिस्म तो जल रहा है
रूह भी जल जायेगी

ता-उम्र अश्क बहा कर हमने
आंखों की बिनाई खोयी
पर न वो जान सका
किसने दामन की सियाही धोयी

रूक ऐ वादे सवा
किसकी खुशबू हो समेटे
मैं पहचान तो लूं
कितने दूर है वो मुझ से
ये मैं जान तो लूं



प्रत्येक नज़्म खूबसूरत!

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया, मोहिन्दर जी.

और अगर पहुंचा उस ओर
वजीर बन कर
बाजी पलट सकता हूं

-क्या बात कही है. खूब!!
-बधाई.

Divine India said...

जबरदस्त!!!
प्रत्येक नज्म अपने-आप में बेहतरीन अर्थपूर्ण और सजल…।

महावीर said...

रूक ऐ वादे सवा
किसकी खुशबू हो समेटे
मैं पहचान तो लूं
कितने दूर है वो मुझ से
ये मैं जान तो लूं
बहुत ख़ूब!वाह!