आस की लौ





आधा ओढा है
आधा बिछाके रखा है
तेरा प्यार इस तरह
हमने बचाके रखा है
रोज आंसू पीये और
रहे घुप्प अंधेरों में
हमने यादों को तेरी
दिल से लगाके रखा है
सुना था हमने कहीं
आग दिल में जरूरी है
जीने मरने के लिये
बस इसी खातिर
आस की लौ को
अब तक जला के रखा है

5 comments:

Anonymous said...

sunder abhivaykti

Unknown said...

आधा ओढा है
आधा बिछाके रखा है
तेरा प्यार इस तरह
हमने बचाके रखा है

बहुत सुंदर।

शोभा said...

मोहिन्दर जी
बहुत खूब । प्रेम भरी कविता है । इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई ।

Udan Tashtari said...

आधा ओढा है
आधा बिछाके रखा है
तेरा प्यार इस तरह
हमने बचाके रखा है


--बहुत बेहतरीन, मोहिन्दर बाबू. उम्दा है.

SahityaShilpi said...

वाह मोहिन्दर जी! एकदम अलग और खूबसूरत अभिव्यक्ति! बधाई स्वीकारें!

-अजय यादव
http://ajayyadavace.blogspot.com/
http://merekavimitra.blogspot.com/