प्रशासनिक पाठ

पाठ नम्बर एक

एक खरगोश ने घूमते घूमते एक काठ्फ़ोडे को आराम से पेड पर बैठे हुये देखा. उसे देखकर खरगोश ने पूछा कि क्या वो भी बिना कुछ करे धरे सारा दिन आराम से बैठ सकता है. काठ्फ़ोडे ने कहा क्यों नहीं.



खरगोश आराम से एक जगह बैठ गया. तभी एक शेर की नजर उस पर पडी और उसने झप्पटा मार कर खरगोश का काम तमाम कर दिया




सीख

निठल्ले बैठने के लिये आपका ज्यादा ऊंचाई पर बैठे होना जरूरी है
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पाठ नम्बर दो

एक टर्की की मुलाकात एक गाय से हुई. टर्की ने गाय से कहा कि वह सबसे ऊंचे पेड की सबसे ऊंची शाख पर बैठना चाहती है परन्तु वहां तक पहुंचने के लिये उसमे शक्ति नहीं है. गाय ने कहा तुम मेरा गोबर खा कर वहां तक पहुंच सकती हो. गोबर में बहुत ताकत होती है.


टर्की ने गाय की बात मान ली और गोबर खाते खाते वो एक दिन सबसे ऊंची शाख तक पहुंचने मे सफ़ल हो गई. तभी एक शिकारी ने उसे देख लिया और गोली मार कर अपना शिकार बना लिया.



सीख

किसी की जूठन खा कर या चापलूसी कर आप उंचाई पर पहुंच तो सकते हैं परन्तु ज्यादा समय तक वहां टिक कर नहीं रह सकते.
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पाठ नम्बर तीन

सर्दी का मौसम था. एक चिडिया उडते उडते सर्दी से बेदम हो कर धरती पर गिर पडी.



चिडिया को लगा उसकी जान निकल जायेगी. तभी एक गाय उधर से गुजरी और उस पर गोबर कर चली गई. गोबर गर्म था. उसकी गर्मी से चिडिया में जान लौट आई और वह चहचहाने लगी.



तभी उधर से एक बिल्ली गुजरी और उसने चिडिया का चहचहाना सुन लिया. बिल्ली गोबर के ढेर से चिडिया को निकाल कर चट्ट कर गई.



सीख

१. आवश्यक नही कि जो आपको मुसीबत में डाले वो आप का दुशमन ही हो.
२. आवश्यक नहीं कि जो आप को मुसीबत से निकाले वो आप का मित्र ही हो.
३. जब आप मुसीबत में हो तो चुप रहना ही उचित है.

8 comments:

शोभा said...

मोहिन्दर जी
अच्छी कोशिश की है । हास्य में शिक्षा दी है । अति सुन्दर ।

Udan Tashtari said...

सारे मेनेजमेंट के गुर सीख लिये. आभार. :)

रवि रतलामी said...

आपके हेडर में दिल तो सचमुच जल कर खाक होने की कोशिश कर रहा है.

जिस औजार से आपने बनाया है, उसमें हिन्दी फ़ॉन्ट में काम नहीं किया जा सकता?

अनिल रघुराज said...

तीनों ही पाठ जबरदस्त हैं, एकदम जातक कथाओं की तरह...

उन्मुक्त said...

वाह बहुत खूब

डॅा. व्योम said...

मोहिन्दर जी बहुत ही सुन्दर ब्लाग है आपका और उतनी ही सुन्दर तथा भावपूर्ण सामग्री दी है आपने ब्लाग पर......
-डा० जगदीश व्योम

रंजू भाटिया said...

:) गुरु जी प्रणाम ..बहुत मज़ा आया इन सीखों को पढने में .:) इसको आपने बहुत ही रोचक ढंग से दिया है .शुक्रिया

सुनीता शानू said...

वाह मोहिन्दर भाई आपतो सबके गुरू निकले...भई इतने सुन्दर तरीके से आपने शिक्षा दी है कि मज़ा आ गया....:)

और क्या बात है किस बात कि नाराजगी है आपको?
रूठ कर क्यों बैठ गये भाई...इतने प्यार से दिया गया निमंत्रण हिन्द-युग्म को समझ नही आ रहा...एसे तो बड़े भाई की तरह हो बोलते थे अब क्या हुआ??????????????
मेरा नाम तक हटा दिया ब्लोग से...:(