मिथ्याबोध




गगन छूने की मंशा में
तने पर्वत-शिखर पर कहीं
एक चुलबुली सूर्य-किरण
सफ़ेद बर्फ़ को टटोलती
धीमे से कान में कुछ बोलती
जाने क्या बात थी बर्फ़
भीतर ही भीतर पिघल
इक धार सी बनकर बहने लगी
ढलानों पर इक सरसराहट हुई
जड़ चेतन हुआ, राह बनने लगी
धारा झरना बनी और झरने लगी

शांत सोईं घाटियां सुगमुगाने लगी
टकरा पत्थरों से जल शोर करने लगा
धारा से धारा मिली रूप हुआ कुछ बड़ा
तलहटी तक पहुँचते बन गयी इक नदी
घौर गर्जन समेटे और उफ़नती हुई
बल खाती हुई, लहराती हुई
जो सामने आ गया, साथ बहाती हुई
जहां कोई वाधा मिली, झील सी हो गई
फ़िर सिर से गुजर, सब बहा ले गयी

अब तो किनारे भी उससे डरने लगे
जो फ़ंलाग जाते थे उछालों से उसको कभी
अब दूर जा कर पुलों पर से गुजरने लगे
फ़िर और कुछ नदियों से संगम हुआ
आ गया उफ़ान मैदानों तक बहता हुआ
नदी अब एक महानदी हो गई
पाट चौड़े हुए मगर गति मध्यम हुई

शुद्ध शीतल धारा का रूप अब न रहा
रसायनो की झाग स्तह पर थी तैरती
किनारे दल दल बने, इक बू सी फ़ैलती
शहरी गंदगी के परनाले और मिल गये
उजला जल भी सियाह सा लगने लगा

हर पल आगे बढ़ती हुई वो थी सोचती
छोड़ पर्वत शिखर वो यहां क्यों आ गई
इस गति से तो थी वो जड़ ही भली
क्यों सूर्य-किरण की सलाह उसे भा गई
बस एक बहने के उन्माद से मात खा गई

था अन्तिम चरण सागर से मिलन की घड़ी
कई धाराओं में इक महानदी बंट गयी
न पहले सा वेग, न कोई भयावह गर्जना
न अपनी विराटता का कोई ओज था
समक्ष सागर के थी वो मात्र इक धार सी
कुछ देर में बनेगी भूतकाल का एक अंश
यही अस्तित्व विहीनता दे रही थी एक दंश
वो स्वतंत्रता व विशालता का बोध
आज शून्य सा था उसे लग रहा

इस पड़ाव पर विलय के वो थी सोचती
वो बहाव उसका नहीं..... ढलानों का था
वो शोर उसका नहीं.... चोट खाई चट्टानों का था
वो तो जड़ थी.. जो वेग था
वो था..सूर्य-किरण का दिया
विशालता उसकी न अपने कारण से थी
कई धाराओं ने स्वंय को, उसमें था खो दिया
जो शिथिलता उसे अन्त में थी आ कर मिली
वो सब उसकी बहायी हुई रेत और मिट्टी से थी
दोषी कोई नहीं, स्वंय के मिथ्याबोध थे
सागर में मिलना उसकी नियति ही थी

4 comments:

Udan Tashtari said...

क्या बात है?? बहुत ही सुन्दर बहाव और उससे भी सुन्दर भाव:

दोषी कोई नहीं, स्वंय के मिथ्याबोध थे
सागर में मिलना उसकी नियति ही थी

-सत्य वचन. लम्बाई के बावजूद बाँधे रखने में पूरी तरह सक्षम. बधाई..ऐसे ही लिखते रहें. शुभकामनायें.

शोभा said...

वाह सुन्दर रचना । बहुत अध्ययन किया लगता है ।

आभा said...

सुन्दर भाव सुन्दर रचना

महावीर said...

सुंदर भावाभिव्यक्ति!