पहली बार मिले हो मुझसे




पहली बार मिले हो मुझसे
तुमको क्या बतलाऊं मैं
भीतर से हैं बंद दरवाजे
जिन्हें खोल न पाऊं मैं

पहली बार मिले हो मुझसे

दर्दों की हैं परतें दर परतें
और यादों के लगे हैं जाले
खुद भी नहीं जहां जाता मैं
तुम्हें कैसे ले जाऊं मैं

पहली बार मिले हो मुझसे

चांद सरीखा उसका चेहरा
मेरी आंखे थी भर बैठी
नित नया सपना मुझे रुलाये
ऊपर से मुस्काऊं मैं

पहली बार मिले हो मुझसे

ना खत हैं, ना तस्वीरें
ना सूखे फ़ूल किताबों में
साथ मेरे ईक बीता कल है
जिसे भूल न पाऊं मैं

पहली बार मिले हो मुझसे

उम्मीदों से मुझे है दहशत
और रिश्तों से डर लगता है
हिस्से, टुकडों में बंटा हुआ हूं
खुद को जोड न पाऊं मैं

पहली बार मिले हो मुझसे

पहली बार मिले हो मुझसे
तुमको क्या बतलाऊं मैं
भीतर से हैं बंद दरवाजे
जिन्हें खोल न पाऊं मैं.

3 comments:

Anita kumar said...

्बड़िया गीत

महावीर said...

बहुत सुंदर!
यह पंक्तियां बहुत पसंद आईं है
ना खत हैं, ना तस्वीरें
ना सूखे फ़ूल किताबों में
साथ मेरे ईक बीता कल है
जिसे भूल न पाऊं मैं
बधाई हो।

SahityaShilpi said...

सुंदर गीत है, मोहिन्दर जी! आपसे सुन तो पहले ही चुका हूँ, आज पढ़ भी लिया.

- अजय यादव
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