सुनने में अटपटा लगता है परन्तु एक बार दिल में बात आ जाये तो पूछे बगैर नहीं रहना चाहिये.. सो सोचा आप सब से भी पूछ ही लूं.
वसीयत लिखना कोई बच्चों का खेल नहीं... हां अगर गांठ में कुछ न हो तो और बात है. यदि मकान, दुकान और बेंक बैलेंस के अतिरिक्त आप एक या एक से अधिक ब्लोग्स (चिट्ठों) के मालिक हैं तो यह और एक मुसीबत है. मकान, दुकान, बेंक बैलेंस का वारिस बनना तो कोई भी स्वीकार कर लेगा परन्तु ब्लोग्स का क्या होगा.
ब्लोग्स की तुलना सठयाए आदमी से की जा सकती है जिसके बुढापे का सहारा कोई बनना नहीं चाहता.. कौन जिम्मेदारी सम्भाले.
औरों का तो पता नहीं परन्तु मेरा अपना निजी अनुभव तो यही है कि मेरे ब्लोग को आज तक घर वालों ने कभी कभार ही पढा होगा और टिप्पणी के नाम पर एक भी टिप्पणी परिवार की और से नहीं है.. वैसे भी कितनी मिलती हैं :) किसी ने ठीक ही कहा है "घर का जोगी जोगडा, बाहर का जोगी सिद्ध". जब घर में डाक्टर, वकील और बडे बडों की नहीं चलती तो फ़िर बेचारा ब्लोगर किस खेत की मूली है.
अपुन ने तो अपने मन की कह ली अब आप अपना सिर खुजाईये, बाल नोचिये और अपने आप से प्रश्न किजिये की आपकी वसीयत में आपके ब्लोग किस के नाम हैं ?
उत्तर मिल जाये तो टिप्प्णी में मुझे भी सूचित कीजिये.. और कोई उत्तर ना मिला तो ब्लोग की दुकान बंद करने के अलावा कोई चारा नहीं रह जायेगा.
4 comments:
अभी इसके बारे में सोचा नहीं, कोई जिम्मेदार और धाँसू पर्शनालिटी होना चाहिए!
---मेरा पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें
हम्म्म्म्म्म ! बात तो सोचने वाली है !
सोचते हैं विचारते हैं ...
जिस दिन मै बांलाग लिखना बन्द करुगां, उस दिन मेरी बीबी बहुत खुश होगी, यह बांलाग तो मेरी बीबी की सोतन है, अब सोतन की बसीयत किस के नाम करे???
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