पिछले कुछ दिन इसी परीक्षण में गुजरे कि ऐसा क्या लिखा या पोस्ट किया जाये जिससे अपने ब्लोग पर भी रीडर्स का ग्राफ़ कम से कम इतना ऊंचा तो हो जाये कि दिल को तसल्ली हो. वैसे तो लिखने वाले बहुत कुछ लिख रहे हैं.. मुझ से कहीं अधिक अच्छा और आकर्षक परन्तु उन ब्लाग पर जा कर भी सन्नाटा ही हाथ लगा. बस खोपडी खुजलाई और सोचा कि थोडा शोध किया जाये कि लोगों को क्या पसन्द है. यहां एक बात साफ़ कर दूं कि पसन्द करने या यूं कहिये पोस्ट तक पहुंचने वालों .. चाहे वह उसे बाद में पढे या न पढें .. और टिप्पणी देने वालों की संख्या में जमीन आसमान का अन्तर है. इसका एक कारण शायद यह हो सकता है कि वह अपनी पोस्ट लिखते लिखते ही इतने थक जाते हैं कि टिप्पणी देने के लिये हिम्मत बचती ही नही.
विषय पर वापस आ जाते हैं कहीं यह न लगने लगे कि लिखना तो कुछ और था और लिख कुछ और दिया.
परीक्षण की इस कडी में पहले एक पांच छ: लाईन का एक विचार पोस्ट किया. मुझे लगा पहले की तरह एक दो टिप्पणी से ज्यादा कुछ मिलने वाला नहीं है मगर आशा की विपरीत 9 तिप्पणी टपकी. उस दिन साईट पर ट्रेफ़िक भी ठीक ठाक रहा.
उसके बाद की दो तीन पोस्ट में चित्र और एनीमेशन पोस्ट किया... ट्रेफ़िक तो ठीक था मगर टिप्पणी नदारद... दो दो से ही काम चलना पडा .. उसमे से भी एक सदाबहार समीर लाल जी की टिप्पणी.
फ़िर एक चुटकला पोस्ट किया .. टिप्पणी तो 7 ही मिली मगर ट्रेफ़िक कमाल का रहा... ग्राफ़ 80 को छू गया. समीर जी ने ग्राफ़ देख कर चुटकी भी ली कि अब से मैं सिर्फ़ चुटकले ही लिखा करूं.
इसके बाद हमने दूसरे ब्लाग छानने की ठानी कि कौन कौन क्या क्या लिख रहा है और उनको कौन कौन पढ और टिप्पणी दे रहा है. इसी कडी में एक ही मिलते जुलते शीर्षक पर दो पोस्ट मिली... एक ओरिजनल जिस पर 47 टिप्पणियां थी और बहुत सी टिप्पणियों को हटा दिया गया था. दूसरी पोस्ट उसी पोस्ट पर आधारित थी.. शीर्षक रूप से मगर बहुत कुछ और पढने के बाद ओरिजनल पोस्ट का संकेत दिया गया था.
आप कहेंगे कि इतनी राम कहानी क्यों सुनाई जा रही है तो आईये अब इससे जो निष्कर्ष निकले उन पर भी कुछ रोशनी डाली जाये कि टिप्पणियों और ट्रफ़िक के लिये क्या किया जाये.
१. कम से कम शब्दों में लिखी सार गर्भित रचना को ही पाठक पढ और पचा पाते हैं और यदि वह लीक से हट कर हुई तो उस पर टिप्पणी भी टिपा देते हैं.
२. ले दे के काम चलाओ... मतलब.. मतलब तो साफ़ हो टिप्पणियां करो और टिप्पणियां पाओ.
३. कोई कन्ट्रोवर्शिल पोस्ट डालो और पाओ टिप्पणियां और ट्रेफ़िक बल्ले बल्ले
४. गंभीर कि जगह कोई लाईट पोस्ट जो कुछ टेन्शन कम कर हंसा सके जैसे चुटकला. कार्टून आदि.. अगर बासी न हुआ तो कुछ कमाल कर सकता है.
५. कुछ ऐसा जो सिर्फ़ बुद्धिजीवियों की समझ में आये और टिप्पणियां पढ कर दूसरे भी टिप्पणी करने पर बाध्य हो जायें
६. टिप्पणी के लिये तो नहीं मगर ट्रेफ़िक के लिये एक कारगर उपाय है... कोई भडकीला, रंगीला, चटकीला.. धांसू जैसा कि हिन्दी समाचारों के शीर्षक होते हैं.. अपनी पोस्ट के लिये शीर्षक दीजिये और.. लोग दनादन आपके ब्लाग पर नजर आयेंगे.
यदि आप इसे पढते हैं और इस पर अमल करते हैं तो यह एक गंभीर पोस्ट है.. यदि आप इसे पढ कर इस पर अपनी पोस्ट के बारे में लिखने पर नाराजगी जाहिर करते हैं तो यह एक कंट्रोवर्शिल पोस्ट है.. अगर आपको इसे पढ कर हंसी आती है तो यह एक लाईट पोस्ट है.. और हां धांसू शीर्षक तो मैं इसे दे ही रहा हूं... हर हाल में मेरा ही फ़ायदा है... टिप्पणी न सही..ट्रेफ़िक तो आने ही वाला है.
9 comments:
लो जी, आपकी टिपण्णी की पोस्ट पर टिपण्णी. खूब मेहनत की है.
हम तो इसे गंभीर पोस्ट की श्रेणी में ही रखेंगे जी. काफी शोध चल रहा है आजकल!!
शीर्षक अपनी तरफ खींचने में समर्थ है | ब्लोगर भी कहाँ कहाँ दिमाग चला लेते हैं , खूब सिलसिलेवार विस्तृत बखान किया है |
अगँभीर ब्लाग्स के लिये किया गया एक गँभीर शोध !
मेरा मानना है कि, टिप्पणी ट्रैफ़िक गौण है, पाठक अहम है !
लिंकित करने का धन्यवाद, मोहिन्दर जी !
देखिये, आपकी पोस्ट ने भी मुझ जैसे कम टिपियाने वाले को टिपियाने पर मजबूर कर दिया न!
हिंदी में प्रेरक कथाओ, प्रसंगों, और रोचक संस्मरणों का एकमात्र ब्लौग http://hindizen.com अवश्य देखें.
भैया इस शोध में पी.एच.डी. की गुंजाईश है क्या?
इस पोस्ट पर भी टिप्पणियों का टोटा !
अरविंद जी की शिकायत को कम करने के लिये एक टिपण्णी और्।
ये शिर्षक भी खुब हिट्स देगा. ्टिप्पणी भी.
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