कभी आँखोँ को
लब बनाया
कभी लबोँ को
दिल से जोडा
सौ कोशिशेँ की
मगर उन्हेँ न
वफा की महक आयी
सब कुछ लुटा दिया
मगर दिल की राहेँ
न आसान हो सकी
न आरजूओँ के सिलसिले रुके
न जिन्दगी रुकी
हर मोड पर
एक नया कारवाँ मिला
कई अजनबी मिले
मगर न वफ़ा का सिला मिला
4 comments:
बहुत ही सुंदर रचना धन्यवाद
दिनांक 03/02/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
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फिर मुझे धोखा मिला, मैं क्या कहूँ........हलचल का रविवारीय विशेषांक .....रचनाकार--गिरीश पंकज जी
बहुत सुन्दर
कोमल भाव लिए अति सुन्दर रचना...
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