कोमल बेल या मोढा - कविता

इस कविता में लडकियों को ’बेल’ और लडकों को ’मोढा’ शब्द से सम्बोधित किया गया है. ’मोढा’ एक प्रादेशिक शब्द है जिसका अर्थ होता है कोई आवलम्बन या सहारा जो बेल को विकसित करने के लिये उसके पास गाड दिया जाता है ताकि बेल उस पर चढ कर पनप सके. इसी सामाजिक कुन्द सोच पर प्रहार करती है यह कविता.

आप इस कविता को  मेरे स्वर में नीचे आडियो प्लेयर पर सुन सकते हैं.

कोमल बेल या मोढा

बेटी व्याही, तो समझो गंगा नहाये
सुनकर लगा था कभी
जैसे कोई पाप पानी मे बहा आये
बचपन से क्षीण परिभाष्य
हर दर,  हर ठौर,  भारित आश्रय
एक कोमल बेल सी मान
हर पल एक मोंढ़ा गढते
थक गई थी अनदेखे, अनबूझे, अनचाहे
सहायक अवरोधों पर चढते चढते
फ़िर हुआ कन्या दान
एक पक्ष अपने दायित्व से मुक्त
दूसरा पक्ष धन और
दो अतिरिक्त हाथों से युक्त
परन्तु क्या बदला है
घर, गांव,  अडोस-पडोस,  अवलम्बन
बाकी सब वही है
एक बेल को उखाड कर
दूसरी जगह रोपा
एक भार दूसरे को सोंपा
बेल पनपेगी,  पल्लवित होगी
पर कौन जाने,  कितनी सबल बनेगी?
क्या जनेगी ?
कोमल बेल या मोंढ़ा
उसी से उसका आंकलन होगा
देखें आज का दुल्हा
कल क्या कहाता है
मुक्त रहता है,  या गंगा नहाता है


1 comment:

हरकीरत ' हीर' said...

suni aapki aawaaz mein .....bahut achhi kavita ....