क्षमा दान से बडा कोई दान नहीं

यह कहानी दो घनिष्ट मित्रों राज और रघु की है जो एक रेगिस्तान से गुजर रहे थे I किसी बात पर उन दोनों में टकरार हो गई I राज ने रघु को तमाचा जड दिया. रघु की भावनायें आहत हुई मगर वह कुछ न बोला और उसने रेत पर लिखा, " मेरे घनिष्ट मित्र ने आज मुझे तमाचा मारा " I

सफ़र जारी रहा दोनों चलते रहे और एक पानी के स्त्रोत के पास से गुजरे I पानी पीने के लिये रघु जैसे ही आगे गया.. कीचड में फ़ंस गया और डूबने लगा I राज ने उसे किसी तरह से बाहर निकाल कर उसकी जान बचाई I रघु ने एक पत्थर पर उकेर कर लिखा, "मेरे घनिष्ट मित्र ने आज मेरी जान बचाई" I

यह देख राज ने रघु से पूछा कि उस दिन जब मैंने तुम्हें तमाचा मारा था तो तुमने रेत पर लिखा था और आज पत्थर पर लिख रहे हो..इसका क्या कारण है ?

रघु ने बहुत सहजता से उत्तर दिया उस दिन मैंने रेत पर इसलिये लिखा था कि जब हवा चले मेरा लिखा मिट जाये और आज पत्थर पर इस लिये लिख रहा हूं कि यह हमेशा लिखा रहे I

जब कोई हमें आहत करता है तो उसे दिल पर इस तरह से लिखना चाहिये कि समय की हवा के झोंके मिटा दें और जब कोई हम पर उपकार करता है तो उसे इस तरह से दिल पर लिखें कि वह हमेशा याद रहे... समय भी उसे न मिटा पाये.

आखिर क्षमा से बडा कोई दान नहीं है I

1 comment:

विभा रानी श्रीवास्तव said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 31 मार्च 2018 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!